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एक उम्र बीत जाती है घर बनाने में और तुम आह भी नहीं करते बस्तियाँ जलाने में

 यें बलात्कार है, मेरे सपनों का, मेरे हौसलों का, मेरे आत्मसम्मान का और मेरे भविष्य का

एक उम्र बीत जाती है घर बनाने में और तुम आह भी नहीं करते बस्तियाँ जलाने में

यह देखो क्या से क्या कर दिया मेरे घर को क्या यह बलात्कार नहीं? 

जो कभी मंदिर था उसे क़ब्रिस्तान बना दिया, देखो मेरे सपनों को कैसे तोड़ा, यह बलात्कार नहीं?






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